وَذَرِ الَّذينَ اتَّخَذوا دينَهُم لَعِبًا وَلَهوًا وَغَرَّتهُمُ الحَياةُ الدُّنيا ۚ وَذَكِّر بِهِ أَن تُبسَلَ نَفسٌ بِما كَسَبَت لَيسَ لَها مِن دونِ اللَّهِ وَلِيٌّ وَلا شَفيعٌ وَإِن تَعدِل كُلَّ عَدلٍ لا يُؤخَذ مِنها ۗ أُولٰئِكَ الَّذينَ أُبسِلوا بِما كَسَبوا ۖ لَهُم شَرابٌ مِن حَميمٍ وَعَذابٌ أَليمٌ بِما كانوا يَكفُرونَ
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
(ऐ रसूल) उनसे पूछो तो कि क्या हम लोग ख़ुदा को छोड़कर उन (माबूदों) से मुनाज़ात (दुआ) करे जो न तो हमें नफ़ा पहुंचा सकते हैं न हमारा कुछ बिगाड़ ही सकते हैं- और जब ख़ुदा हमारी हिदायत कर चुका) उसके बाद उल्टे पावँ कुफ्र की तरफ उस शख़्श की तरह फिर जाएं जिसे शैतानों ने जंगल में भटका दिया हो और वह हैरान (परेशान) हो (कि कहा जाए क्या करें) और उसके कुछ रफीक़ हो कि उसे राहे रास्त (सीधे रास्ते) की तरफ पुकारते रह जाएं कि (उधर) हमारे पास आओ और वह एक न सुने (ऐ रसूल) तुम कह दो कि हिदायत तो बस ख़ुदा की हिदायत है और हमें तो हुक्म ही दिया गया है कि हम सारे जहॉन के परवरदिगार ख़ुदा के फरमाबरदार हैं