156أَن تَقولوا إِنَّما أُنزِلَ الكِتابُ عَلىٰ طائِفَتَينِ مِن قَبلِنا وَإِن كُنّا عَن دِراسَتِهِم لَغافِلينَफ़ारूक़ ख़ान & नदवी(और ऐ मुशरेकीन ये किताब हमने इसलिए नाज़िल की कि तुम कहीं) यह कह बैठो कि हमसे पहले किताब ख़ुदा तो बस सिर्फ दो ही गिरोहों (यहूद व नसारा) पर नाज़िल हुई थी अगरचे हम तो उनके पढ़ने (पढ़ाने) से बेखबर थे