۞ قُل تَعالَوا أَتلُ ما حَرَّمَ رَبُّكُم عَلَيكُم ۖ أَلّا تُشرِكوا بِهِ شَيئًا ۖ وَبِالوالِدَينِ إِحسانًا ۖ وَلا تَقتُلوا أَولادَكُم مِن إِملاقٍ ۖ نَحنُ نَرزُقُكُم وَإِيّاهُم ۖ وَلا تَقرَبُوا الفَواحِشَ ما ظَهَرَ مِنها وَما بَطَنَ ۖ وَلا تَقتُلُوا النَّفسَ الَّتي حَرَّمَ اللَّهُ إِلّا بِالحَقِّ ۚ ذٰلِكُم وَصّاكُم بِهِ لَعَلَّكُم تَعقِلونَ
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
(ऐ रसूल) तुम उनसे कहो कि (बेबस) आओ जो चीज़ें ख़ुदा ने तुम पर हराम की हैं वह मैं तुम्हें पढ़ कर सुनाऊँ (वह) यह कि किसी चीज़ को ख़ुदा का शरीक़ न बनाओ और माँ बाप के साथ नेक सुलूक़ करो और मुफ़लिसी के ख़ौफ से अपनी औलाद को मार न डालना (क्योंकि) उनको और तुमको रिज़क देने वाले तो हम हैं और बदकारियों के क़रीब भी न जाओ ख्वाह (चाहे) वह ज़ाहिर हो या पोशीदा और किसी जान वाले को जिस के क़त्ल को ख़ुदा ने हराम किया है न मार डालना मगर (किसी) हक़ के ऐवज़ में वह बातें हैं जिनका ख़ुदा ने तुम्हें हुक्म दिया है ताकि तुम लोग समझो और यतीम के माल के करीब भी न जाओ