105وَكَذٰلِكَ نُصَرِّفُ الآياتِ وَلِيَقولوا دَرَستَ وَلِنُبَيِّنَهُ لِقَومٍ يَعلَمونَफ़ारूक़ ख़ान & अहमदऔर इसी प्रकार हम अपनी आयतें विभिन्न ढंग से बयान करते है (कि वे सुने) और इसलिए कि वे कह लें, "(ऐ मुहम्मद!) तुमनेकहीं से पढ़-पढ़ा लिया है।" और इसलिए भी कि हम उनके लिए जो जानना चाहें, सत्य को स्पष्ट कर दें