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Sura 57
Aya 16
16
۞ أَلَم يَأنِ لِلَّذينَ آمَنوا أَن تَخشَعَ قُلوبُهُم لِذِكرِ اللَّهِ وَما نَزَلَ مِنَ الحَقِّ وَلا يَكونوا كَالَّذينَ أوتُوا الكِتابَ مِن قَبلُ فَطالَ عَلَيهِمُ الأَمَدُ فَقَسَت قُلوبُهُم ۖ وَكَثيرٌ مِنهُم فاسِقونَ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

क्या ईमानदारों के लिए अभी तक इसका वक्त नहीं आया कि ख़ुदा की याद और क़ुरान के लिए जो (ख़ुदा की तरफ से) नाज़िल हुआ है उनके दिल नरम हों और वह उन लोगों के से न हो जाएँ जिनको उन से पहले किताब (तौरेत, इन्जील) दी गयी थी तो (जब) एक ज़माना दराज़ गुज़र गया तो उनके दिल सख्त हो गए और इनमें से बहुतेरे बदकार हैं