65وَلَو أَنَّ أَهلَ الكِتابِ آمَنوا وَاتَّقَوا لَكَفَّرنا عَنهُم سَيِّئَاتِهِم وَلَأَدخَلناهُم جَنّاتِ النَّعيمِफ़ारूक़ ख़ान & नदवीऔर अगर अहले किताब ईमान लाते और (हमसे) डरते तो हम ज़रूर उनके गुनाहों से दरगुज़र करते और उनको नेअमत व आराम (बेहिशत के बाग़ों में) पहुंचा देते