وَأَنزَلنا إِلَيكَ الكِتابَ بِالحَقِّ مُصَدِّقًا لِما بَينَ يَدَيهِ مِنَ الكِتابِ وَمُهَيمِنًا عَلَيهِ ۖ فَاحكُم بَينَهُم بِما أَنزَلَ اللَّهُ ۖ وَلا تَتَّبِع أَهواءَهُم عَمّا جاءَكَ مِنَ الحَقِّ ۚ لِكُلٍّ جَعَلنا مِنكُم شِرعَةً وَمِنهاجًا ۚ وَلَو شاءَ اللَّهُ لَجَعَلَكُم أُمَّةً واحِدَةً وَلٰكِن لِيَبلُوَكُم في ما آتاكُم ۖ فَاستَبِقُوا الخَيراتِ ۚ إِلَى اللَّهِ مَرجِعُكُم جَميعًا فَيُنَبِّئُكُم بِما كُنتُم فيهِ تَختَلِفونَ
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
और (ऐ रसूल) हमने तुम पर भी बरहक़ किताब नाज़िल की जो किताब (उसके पहले से) उसके वक्त में मौजूद है उसकी तसदीक़ करती है और उसकी निगेहबान (भी) है जो कुछ तुम पर ख़ुदा ने नाज़िल किया है उसी के मुताबिक़ तुम भी हुक्म दो और जो हक़ बात ख़ुदा की तरफ़ से आ चुकी है उससे कतरा के उन लोगों की ख्वाहिशे नफ़सियानी की पैरवी न करो और हमने तुम में हर एक के वास्ते (हस्बे मसलेहते वक्त) एक एक शरीयत और ख़ास तरीक़े पर मुक़र्रर कर दिया और अगर ख़ुदा चाहता तो तुम सब के सब को एक ही (शरीयत की) उम्मत बना देता मगर (मुख़तलिफ़ शरीयतों से) ख़ुदा का मतलब यह था कि जो कुछ तुम्हें दिया है उसमें तुम्हारा इमतेहान करे बस तुम नेकी में लपक कर आगे बढ़ जाओ और (यक़ीन जानो कि) तुम सब को ख़ुदा ही की तरफ़ लौट कर जाना है