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Sura 5
Aya 2
2
يا أَيُّهَا الَّذينَ آمَنوا لا تُحِلّوا شَعائِرَ اللَّهِ وَلَا الشَّهرَ الحَرامَ وَلَا الهَديَ وَلَا القَلائِدَ وَلا آمّينَ البَيتَ الحَرامَ يَبتَغونَ فَضلًا مِن رَبِّهِم وَرِضوانًا ۚ وَإِذا حَلَلتُم فَاصطادوا ۚ وَلا يَجرِمَنَّكُم شَنَآنُ قَومٍ أَن صَدّوكُم عَنِ المَسجِدِ الحَرامِ أَن تَعتَدوا ۘ وَتَعاوَنوا عَلَى البِرِّ وَالتَّقوىٰ ۖ وَلا تَعاوَنوا عَلَى الإِثمِ وَالعُدوانِ ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۖ إِنَّ اللَّهَ شَديدُ العِقابِ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह की निशानियों का अनादर न करो; न आदर के महीनों का, न क़ुरबानी के जानवरों का और न जानवरों का जिनका गरदनों में पट्टे पड़े हो और न उन लोगों का जो अपने रब के अनुग्रह और उसकी प्रसन्नता की चाह में प्रतिष्ठित गृह (काबा) को जाते हो। और जब इहराम की दशा से बाहर हो जाओ तो शिकार करो। और ऐसा न हो कि एक गिरोह की शत्रुता, जिसने तुम्हारे लिए प्रतिष्ठित घर का रास्ता बन्द कर दिया था, तुम्हें इस बात पर उभार दे कि तुम ज़्यादती करने लगो। हक़ अदा करने और ईश-भय के काम में तुम एक-दूसरे का सहयोग करो और हक़ मारने और ज़्यादती के काम में एक-दूसरे का सहयोग न करो। अल्लाह का डर रखो; निश्चय ही अल्लाह बड़ा कठोर दंड देनेवाला है