مَثَلُ الجَنَّةِ الَّتي وُعِدَ المُتَّقونَ ۖ فيها أَنهارٌ مِن ماءٍ غَيرِ آسِنٍ وَأَنهارٌ مِن لَبَنٍ لَم يَتَغَيَّر طَعمُهُ وَأَنهارٌ مِن خَمرٍ لَذَّةٍ لِلشّارِبينَ وَأَنهارٌ مِن عَسَلٍ مُصَفًّى ۖ وَلَهُم فيها مِن كُلِّ الثَّمَراتِ وَمَغفِرَةٌ مِن رَبِّهِم ۖ كَمَن هُوَ خالِدٌ فِي النّارِ وَسُقوا ماءً حَميمًا فَقَطَّعَ أَمعاءَهُم
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
जिस बेहिश्त का परहेज़गारों से वायदा किया जाता है उसकी सिफत ये है कि उसमें पानी की नहरें जिनमें ज़रा बू नहीं और दूध की नहरें हैं जिनका मज़ा तक नहीं बदला और शराब की नहरें हैं जो पीने वालों के लिए (सरासर) लज्ज़त है और साफ़ शफ्फ़ाफ़ यहद की नहरें हैं और वहाँ उनके लिए हर किस्म के मेवे हैं और उनके परवरदिगार की तरफ से बख़्शिस है (भला ये लोग) उनके बराबर हो सकते हैं जो हमेशा दोज़ख़ में रहेंगे और उनको खौलता हुआ पानी पिलाया जाएगा तो वह ऑंतों के टुकड़े टुकड़े कर डालेगा