32وَإِذا قيلَ إِنَّ وَعدَ اللَّهِ حَقٌّ وَالسّاعَةُ لا رَيبَ فيها قُلتُم ما نَدري مَا السّاعَةُ إِن نَظُنُّ إِلّا ظَنًّا وَما نَحنُ بِمُستَيقِنينَफ़ारूक़ ख़ान & नदवीऔर जब (तुम से) कहा जाता था कि ख़ुदा का वायदा सच्चा है और क़यामत (के आने) में कुछ शुबहा नहीं तो तुम कहते थे कि हम नहीं जानते कि क़यामत क्या चीज़ है हम तो बस (उसे) एक ख्याली बात समझते हैं और हम तो (उसका) यक़ीन नहीं रखते