80أَم يَحسَبونَ أَنّا لا نَسمَعُ سِرَّهُم وَنَجواهُم ۚ بَلىٰ وَرُسُلُنا لَدَيهِم يَكتُبونَफ़ारूक़ ख़ान & अहमदया वे समझते है कि हम उनकी छिपी बात और उनकी कानाफूसी को सुनते नही? क्यों नहीं, और हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) उनके समीप हैं, वे लिखते रहते है।"