8وَلَو شاءَ اللَّهُ لَجَعَلَهُم أُمَّةً واحِدَةً وَلٰكِن يُدخِلُ مَن يَشاءُ في رَحمَتِهِ ۚ وَالظّالِمونَ ما لَهُم مِن وَلِيٍّ وَلا نَصيرٍफ़ारूक़ ख़ान & अहमदयदि अल्लाह चाहता तो उन्हें एक ही समुदाय बना देता, किन्तु वह जिसे चाहता है अपनी दयालुता में दाख़िल करता है। रहे ज़ालिम, तो उनका न तो कोई निकटवर्ती मित्र है और न कोई (दूर का) सहायक