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Sura 42
Aya 48
48
فَإِن أَعرَضوا فَما أَرسَلناكَ عَلَيهِم حَفيظًا ۖ إِن عَلَيكَ إِلَّا البَلاغُ ۗ وَإِنّا إِذا أَذَقنَا الإِنسانَ مِنّا رَحمَةً فَرِحَ بِها ۖ وَإِن تُصِبهُم سَيِّئَةٌ بِما قَدَّمَت أَيديهِم فَإِنَّ الإِنسانَ كَفورٌ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अब यदि वे ध्यान में न लाएँ तो हमने तो तुम्हें उनपर कोई रक्षक बनाकर तो भेजा नहीं है। तुमपर तो केवल (संदेश) पहुँचा देने की ज़िम्मेदारी है। हाल यह है कि जब हम मनुष्य को अपनी ओर से किसी दयालुता का आस्वादन कराते है तो वह उसपर इतराने लगता है, किन्तु ऐसे लोगों के हाथों ने जो कुछ आगे भेजा है उसके कारण यदि उन्हें कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो निश्चय ही वही मनुष्य बड़ा कृतघ्न बन जाता है