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Sura 4
Aya 77
77
أَلَم تَرَ إِلَى الَّذينَ قيلَ لَهُم كُفّوا أَيدِيَكُم وَأَقيمُوا الصَّلاةَ وَآتُوا الزَّكاةَ فَلَمّا كُتِبَ عَلَيهِمُ القِتالُ إِذا فَريقٌ مِنهُم يَخشَونَ النّاسَ كَخَشيَةِ اللَّهِ أَو أَشَدَّ خَشيَةً ۚ وَقالوا رَبَّنا لِمَ كَتَبتَ عَلَينَا القِتالَ لَولا أَخَّرتَنا إِلىٰ أَجَلٍ قَريبٍ ۗ قُل مَتاعُ الدُّنيا قَليلٌ وَالآخِرَةُ خَيرٌ لِمَنِ اتَّقىٰ وَلا تُظلَمونَ فَتيلًا

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

(ऐ रसूल) क्या तुमने उन लोगों (के हाल) पर नज़र नहीं की जिनको (जेहाद की आरज़ू थी) और उनको हुक्म दिया गया था कि (अभी) अपने हाथ रोके रहो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो और ज़कात दिए जाओ मगर जब जिहाद (उनपर वाजिब किया गया तो) उनमें से कुछ लोग (बोदेपन में) लोगों से इस तरह डरने लगे जैसे कोई ख़ुदा से डरे बल्कि उससे कहीं ज्यादा और (घबराकर) कहने लगे ख़ुदाया तूने हमपर जेहाद क्यों वाजिब कर दिया हमको कुछ दिनों की और मोहलत क्यों न दी (ऐ रसूल) उनसे कह दो कि दुनिया की आसाइश बहुत थोड़ा सा है और जो (ख़ुदा से) डरता है उसकी आख़ेरत उससे कहीं बेहतर है