29يا أَيُّهَا الَّذينَ آمَنوا لا تَأكُلوا أَموالَكُم بَينَكُم بِالباطِلِ إِلّا أَن تَكونَ تِجارَةً عَن تَراضٍ مِنكُم ۚ وَلا تَقتُلوا أَنفُسَكُم ۚ إِنَّ اللَّهَ كانَ بِكُم رَحيمًاफ़ारूक़ ख़ान & नदवीए ईमानवालों आपस में एक दूसरे का माल नाहक़ न खा जाया करो लेकिन (हॉ) तुम लोगों की बाहमी रज़ामन्दी से तिजारत हो (और उसमें एक दूसरे का माल हो तो मुज़ाएक़ा नहीं) और अपना गला आप घूंट के अपनी जान न दो (क्योंकि) ख़ुदा तो ज़रूर तुम्हारे हाल पर मेहरबान है