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Sura 4
Aya 19
19
يا أَيُّهَا الَّذينَ آمَنوا لا يَحِلُّ لَكُم أَن تَرِثُوا النِّساءَ كَرهًا ۖ وَلا تَعضُلوهُنَّ لِتَذهَبوا بِبَعضِ ما آتَيتُموهُنَّ إِلّا أَن يَأتينَ بِفاحِشَةٍ مُبَيِّنَةٍ ۚ وَعاشِروهُنَّ بِالمَعروفِ ۚ فَإِن كَرِهتُموهُنَّ فَعَسىٰ أَن تَكرَهوا شَيئًا وَيَجعَلَ اللَّهُ فيهِ خَيرًا كَثيرًا

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

ऐ ईमानदारों तुमको ये जायज़ नहीं कि (अपने मुरिस की) औरतों से (निकाह कर) के (ख्वाह मा ख्वाह) ज़बरदस्ती वारिस बन जाओ और जो कुछ तुमने उन्हें (शौहर के तर्के से) दिया है उसमें से कुछ (आपस से कुछ वापस लेने की नीयत से) उन्हें दूसरे के साथ (निकाह करने से) न रोको हॉ जब वह खुल्लम खुल्ला कोई बदकारी करें तो अलबत्ता रोकने में (मज़ाएक़ा (हर्ज)नहीं) और बीवियों के साथ अच्छा सुलूक करते रहो और अगर तुम किसी वजह से उन्हें नापसन्द करो (तो भी सब्र करो क्योंकि) अजब नहीं कि किसी चीज़ को तुम नापसन्द करते हो और ख़ुदा तुम्हारे लिए उसमें बहुत बेहतरी कर दे