154ما لَكُم كَيفَ تَحكُمونَफ़ारूक़ ख़ान & नदवी(अरे कम्बख्तों) तुम्हें क्या जुनून हो गया है तुम लोग (बैठे-बैठे) कैसा फैसला करते हो