58وَالَّذينَ يُؤذونَ المُؤمِنينَ وَالمُؤمِناتِ بِغَيرِ مَا اكتَسَبوا فَقَدِ احتَمَلوا بُهتانًا وَإِثمًا مُبينًاफ़ारूक़ ख़ान & नदवीऔर जो लोग ईमानदार मर्द और ईमानदार औरतों को बगैर कुछ किए द्दरे (तोहमत देकर) अज़ीयत देते हैं तो वह एक बोहतान और सरीह गुनाह का बोझ (अपनी गर्दन पर) उठाते हैं