44أَم تَحسَبُ أَنَّ أَكثَرَهُم يَسمَعونَ أَو يَعقِلونَ ۚ إِن هُم إِلّا كَالأَنعامِ ۖ بَل هُم أَضَلُّ سَبيلًاफ़ारूक़ ख़ान & नदवीक्या ये तुम्हारा ख्याल है कि इन (कुफ्फ़ारों) में अक्सर (बात) सुनते या समझते है (नहीं) ये तो बस बिल्कुल मिसल जानवरों के हैं बल्कि उन से भी ज्यादा राह (रास्त) से भटके हुए