48وَكَأَيِّن مِن قَريَةٍ أَملَيتُ لَها وَهِيَ ظالِمَةٌ ثُمَّ أَخَذتُها وَإِلَيَّ المَصيرُफ़ारूक़ ख़ान & नदवीऔर कितनी बस्तियाँ हैं कि मैंने उन्हें (चन्द) मोहलत दी हालाँकि वह सरकश थी फिर (आख़िर) मैंने उन्हें ले डाला और (सबको) मेरी तरफ लौटना है