48وَكَأَيِّن مِن قَريَةٍ أَملَيتُ لَها وَهِيَ ظالِمَةٌ ثُمَّ أَخَذتُها وَإِلَيَّ المَصيرُफ़ारूक़ ख़ान & अहमदकितनी ही बस्तियाँ है जिनको मैंने मुहलत दी इस दशा में कि वे ज़ालिम थीं। फिर मैंने उन्हें पकड़ लिया और अन्ततः आना तो मेरी ही ओर है