45فَكَأَيِّن مِن قَريَةٍ أَهلَكناها وَهِيَ ظالِمَةٌ فَهِيَ خاوِيَةٌ عَلىٰ عُروشِها وَبِئرٍ مُعَطَّلَةٍ وَقَصرٍ مَشيدٍफ़ारूक़ ख़ान & नदवीग़रज़ कितनी बस्तियाँ हैं कि हम ने उन्हें बरबाद कर दिया और वह सरकश थीं पस वह अपनी छतों पर ढही पड़ी हैं और कितने बेकार (उजडे क़ुएँ और कितने) मज़बूत बड़े-बड़े ऊँचे महल (वीरान हो गए)