31حُنَفاءَ لِلَّهِ غَيرَ مُشرِكينَ بِهِ ۚ وَمَن يُشرِك بِاللَّهِ فَكَأَنَّما خَرَّ مِنَ السَّماءِ فَتَخطَفُهُ الطَّيرُ أَو تَهوي بِهِ الرّيحُ في مَكانٍ سَحيقٍफ़ारूक़ ख़ान & अहमदइस तरह कि अल्लाह ही की ओर के होकर रहो। उसके साथ किसी को साझी न ठहराओ, क्योंकि जो कोई अल्लाह के साथ साझी ठहराता है तो मानो वह आकाश से गिर पड़ा। फिर चाहे उसे पक्षी उचक ले जाएँ या वायु उसे किसी दूरवर्ती स्थान पर फेंक दे