102يَومَ يُنفَخُ فِي الصّورِ ۚ وَنَحشُرُ المُجرِمينَ يَومَئِذٍ زُرقًاफ़ारूक़ ख़ान & अहमदजिस दिन सूर फूँका जाएगा और हम अपराधियों को उस दिन इस दशा में इकट्ठा करेंगे कि उनकी आँखे नीली पड़ गई होंगी