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Sura 2
Aya 85
85
ثُمَّ أَنتُم هٰؤُلاءِ تَقتُلونَ أَنفُسَكُم وَتُخرِجونَ فَريقًا مِنكُم مِن دِيارِهِم تَظاهَرونَ عَلَيهِم بِالإِثمِ وَالعُدوانِ وَإِن يَأتوكُم أُسارىٰ تُفادوهُم وَهُوَ مُحَرَّمٌ عَلَيكُم إِخراجُهُم ۚ أَفَتُؤمِنونَ بِبَعضِ الكِتابِ وَتَكفُرونَ بِبَعضٍ ۚ فَما جَزاءُ مَن يَفعَلُ ذٰلِكَ مِنكُم إِلّا خِزيٌ فِي الحَياةِ الدُّنيا ۖ وَيَومَ القِيامَةِ يُرَدّونَ إِلىٰ أَشَدِّ العَذابِ ۗ وَمَا اللَّهُ بِغافِلٍ عَمّا تَعمَلونَ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

(कि हाँ ऐसा हुआ था) फिर वही लोग तो तुम हो कि आपस में एक दूसरे को क़त्ल करते हो और अपनों से एक जत्थे के नाहक़ और ज़बरदस्ती हिमायती बनकर दूसरे को शहर बदर करते हो (और लुत्फ़ तो ये है कि) अगर वही लोग क़ैदी बनकर तम्हारे पास (मदद माँगने) आए तो उनको तावान देकर छुड़ा लेते हो हालाँकि उनका निकालना ही तुम पर हराम किया गया था तो फिर क्या तुम (किताबे खुदा की) बाज़ बातों पर ईमान रखते हो और बाज़ से इन्कार करते हो पस तुम में से जो लोग ऐसा करें उनकी सज़ा इसके सिवा और कुछ नहीं कि ज़िन्दगी भर की रूसवाई हो और (आख़िरकार) क़यामत के दिन सख्त अज़ाब की तरफ लौटा दिये जाए और जो कुछ तुम लोग करते हो खुदा उससे ग़ाफ़िल नहीं है