يا أَيُّهَا الَّذينَ آمَنوا لا تُبطِلوا صَدَقاتِكُم بِالمَنِّ وَالأَذىٰ كَالَّذي يُنفِقُ مالَهُ رِئَاءَ النّاسِ وَلا يُؤمِنُ بِاللَّهِ وَاليَومِ الآخِرِ ۖ فَمَثَلُهُ كَمَثَلِ صَفوانٍ عَلَيهِ تُرابٌ فَأَصابَهُ وابِلٌ فَتَرَكَهُ صَلدًا ۖ لا يَقدِرونَ عَلىٰ شَيءٍ مِمّا كَسَبوا ۗ وَاللَّهُ لا يَهدِي القَومَ الكافِرينَ
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
ऐ ईमानदारों आपनी खैरात को एहसान जताने और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) देने की वजह से उस शख्स की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोगों को दिखाने के वास्ते ख़र्च करता है और ख़ुदा और रोजे आखेरत पर ईमान नहीं रखता तो उसकी खैरात की मिसाल उस चिकनी चट्टान की सी है जिसपर कुछ ख़ाक (पड़ी हुई) हो फिर उसपर ज़ोर शोर का (बड़े बड़े क़तरों से) मेंह बरसे और उसको (मिट्टी को बहाके) चिकना चुपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) रियाकार अपनी उस ख़ैरात या उसके सवाब में से जो उन्होंने की है किसी चीज़ पर क़ब्ज़ा न पाएंगे (न दुनिया में न आख़ेरत में) और ख़ुदा काफ़िरों को हिदायत करके मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता