وَإِذا طَلَّقتُمُ النِّساءَ فَبَلَغنَ أَجَلَهُنَّ فَأَمسِكوهُنَّ بِمَعروفٍ أَو سَرِّحوهُنَّ بِمَعروفٍ ۚ وَلا تُمسِكوهُنَّ ضِرارًا لِتَعتَدوا ۚ وَمَن يَفعَل ذٰلِكَ فَقَد ظَلَمَ نَفسَهُ ۚ وَلا تَتَّخِذوا آياتِ اللَّهِ هُزُوًا ۚ وَاذكُروا نِعمَتَ اللَّهِ عَلَيكُم وَما أَنزَلَ عَلَيكُم مِنَ الكِتابِ وَالحِكمَةِ يَعِظُكُم بِهِ ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعلَموا أَنَّ اللَّهَ بِكُلِّ شَيءٍ عَليمٌ
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
और जब तुम अपनी बीवियों को तलाक़ दो और उनकी मुद्दत पूरी होने को आए तो अच्छे उनवान से उन को रोक लो या हुस्ने सुलूक से बिल्कुल रुख़सत ही कर दो और उन्हें तकलीफ पहुँचाने के लिए न रोको ताकि (फिर उन पर) ज्यादती करने लगो और जो ऐसा करेगा तो यक़ीनन अपने ही पर जुल्म करेगा और ख़ुदा के एहकाम को कुछ हँसी ठट्टा न समझो और ख़ुदा ने जो तुम्हें नेअमतें दी हैं उन्हें याद करो और जो किताब और अक्ल की बातें तुम पर नाज़िल की उनसे तुम्हारी नसीहत करता है और ख़ुदा से डरते रहो और समझ रखो कि ख़ुदा हर चीज़ को ज़रुर जानता है