يَسأَلونَكَ عَنِ الشَّهرِ الحَرامِ قِتالٍ فيهِ ۖ قُل قِتالٌ فيهِ كَبيرٌ ۖ وَصَدٌّ عَن سَبيلِ اللَّهِ وَكُفرٌ بِهِ وَالمَسجِدِ الحَرامِ وَإِخراجُ أَهلِهِ مِنهُ أَكبَرُ عِندَ اللَّهِ ۚ وَالفِتنَةُ أَكبَرُ مِنَ القَتلِ ۗ وَلا يَزالونَ يُقاتِلونَكُم حَتّىٰ يَرُدّوكُم عَن دينِكُم إِنِ استَطاعوا ۚ وَمَن يَرتَدِد مِنكُم عَن دينِهِ فَيَمُت وَهُوَ كافِرٌ فَأُولٰئِكَ حَبِطَت أَعمالُهُم فِي الدُّنيا وَالآخِرَةِ ۖ وَأُولٰئِكَ أَصحابُ النّارِ ۖ هُم فيها خالِدونَ
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
(ऐ रसूल) तुमसे लोग हुरमत वाले महीनों की निस्बत पूछते हैं कि (आया) जिहाद उनमें जायज़ है तो तुम उन्हें जवाब दो कि इन महीनों में जेहाद बड़ा गुनाह है और ये भी याद रहे कि ख़ुदा की राह से रोकना और ख़ुदा से इन्कार और मस्जिदुल हराम (काबा) से रोकना और जो उस के अहल है उनका मस्जिद से निकाल बाहर करना (ये सब) ख़ुदा के नज़दीक इस से भी बढ़कर गुनाह है और फ़ितना परदाज़ी कुश्ती ख़़ून से भी बढ़ कर है और ये कुफ्फ़ार हमेशा तुम से लड़ते ही चले जाएँगें यहाँ तक कि अगर उन का बस चले तो तुम को तुम्हारे दीन से फिरा दे और तुम में जो शख्स अपने दीन से फिरा और कुफ़्र की हालत में मर गया तो ऐसों ही का किया कराया सब कुछ दुनिया और आखेरत (दोनों) में अकारत है और यही लोग जहन्नुमी हैं (और) वह उसी में हमेशा रहेंगें