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Sura 2
Aya 189
189
۞ يَسأَلونَكَ عَنِ الأَهِلَّةِ ۖ قُل هِيَ مَواقيتُ لِلنّاسِ وَالحَجِّ ۗ وَلَيسَ البِرُّ بِأَن تَأتُوا البُيوتَ مِن ظُهورِها وَلٰكِنَّ البِرَّ مَنِ اتَّقىٰ ۗ وَأتُوا البُيوتَ مِن أَبوابِها ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ لَعَلَّكُم تُفلِحونَ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

(ऐ रसूल) तुम से लोग चाँद के बारे में पूछते हैं (कि क्यो घटता बढ़ता है) तुम कह दो कि उससे लोगों के (दुनयावी) अम्र और हज के अवक़ात मालूम होते है और ये कोई भली बात नही है कि घरो में पिछवाड़े से फाँद के) आओ बल्कि नेकी उसकी है जो परहेज़गारी करे और घरों में आना हो तो) उनके दरवाजों क़ी तरफ से आओ और ख़ुदा से डरते रहो ताकि तुम मुराद को पहुँचो