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Sura 2
Aya 184
184
أَيّامًا مَعدوداتٍ ۚ فَمَن كانَ مِنكُم مَريضًا أَو عَلىٰ سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِن أَيّامٍ أُخَرَ ۚ وَعَلَى الَّذينَ يُطيقونَهُ فِديَةٌ طَعامُ مِسكينٍ ۖ فَمَن تَطَوَّعَ خَيرًا فَهُوَ خَيرٌ لَهُ ۚ وَأَن تَصوموا خَيرٌ لَكُم ۖ إِن كُنتُم تَعلَمونَ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

(वह भी हमेशा नहीं बल्कि) गिनती के चन्द रोज़ इस पर भी (रोज़े के दिनों में) जो शख्स तुम में से बीमार हो या सफर में हो तो और दिनों में जितने क़ज़ा हुए हो) गिन के रख ले और जिन्हें रोज़ा रखने की कूवत है और न रखें तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना खिला देना है और जो शख्स अपनी ख़ुशी से भलाई करे तो ये उस के लिए ज्यादा बेहतर है और अगर तुम समझदार हो तो (समझ लो कि फिदये से) रोज़ा रखना तुम्हारे हक़ में बहरहाल अच्छा है