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Sura 2
Aya 109
109
وَدَّ كَثيرٌ مِن أَهلِ الكِتابِ لَو يَرُدّونَكُم مِن بَعدِ إيمانِكُم كُفّارًا حَسَدًا مِن عِندِ أَنفُسِهِم مِن بَعدِ ما تَبَيَّنَ لَهُمُ الحَقُّ ۖ فَاعفوا وَاصفَحوا حَتّىٰ يَأتِيَ اللَّهُ بِأَمرِهِ ۗ إِنَّ اللَّهَ عَلىٰ كُلِّ شَيءٍ قَديرٌ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

बहुत-से किताबवाले अपने भीतर की ईर्ष्या से चाहते है कि किसी प्रकार वे तुम्हारे ईमान लाने के बाद फेरकर तुम्हे इनकार कर देनेवाला बना दें, यद्यपि सत्य उनपर प्रकट हो चुका है, तो तुम दरगुज़र (क्षमा) से काम लो और जाने दो यहाँ तक कि अल्लाह अपना फ़ैसला लागू न कर दे। निस्संदेह अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है