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Sura 18
Aya 82
82
وَأَمَّا الجِدارُ فَكانَ لِغُلامَينِ يَتيمَينِ فِي المَدينَةِ وَكانَ تَحتَهُ كَنزٌ لَهُما وَكانَ أَبوهُما صالِحًا فَأَرادَ رَبُّكَ أَن يَبلُغا أَشُدَّهُما وَيَستَخرِجا كَنزَهُما رَحمَةً مِن رَبِّكَ ۚ وَما فَعَلتُهُ عَن أَمري ۚ ذٰلِكَ تَأويلُ ما لَم تَسطِع عَلَيهِ صَبرًا

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

और वह जो दीवार थी (जिसे मैंने खड़ा कर दिया) तो वह शहर के दो यतीम लड़कों की थी और उसके नीचे उन्हीं दोनों लड़कों का ख़ज़ाना (गड़ा हुआ था) और उन लड़कों का बाप एक नेक आदमी था तो तुम्हारे परवरदिगार ने चाहा कि दोनों लड़के अपनी जवानी को पहुँचे तो तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी से अपना ख़ज़ाने निकाल ले और मैंने (जो कुछ किया) कुछ अपने एख्तियार से नहीं किया (बल्कि खुदा के हुक्म से) ये हक़ीक़त है उन वाक़यात की जिन पर आपसे सब्र न हो सका