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Sura 18
Aya 31
31
أُولٰئِكَ لَهُم جَنّاتُ عَدنٍ تَجري مِن تَحتِهِمُ الأَنهارُ يُحَلَّونَ فيها مِن أَساوِرَ مِن ذَهَبٍ وَيَلبَسونَ ثِيابًا خُضرًا مِن سُندُسٍ وَإِستَبرَقٍ مُتَّكِئينَ فيها عَلَى الأَرائِكِ ۚ نِعمَ الثَّوابُ وَحَسُنَت مُرتَفَقًا

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

ये वही लोग हैं जिनके (रहने सहने के) लिए सदाबहार (बेहश्त के) बाग़ात हैं उनके (मकानात के) नीचे नहरें जारी होगीं वह उन बाग़ात में दमकते हुए कुन्दन के कंगन से सँवारे जाँएगें और उन्हें बारीक रेशम (क्रेब) और दबीज़ रेश्म (वाफते)के धानी जोड़े पहनाए जाएँगें और तख्तों पर तकिए लगाए (बैठे) होगें क्या ही अच्छा बदला है और (बेहश्त भी आसाइश की) कैसी अच्छी जगह है