وَلَو أَنَّ قُرآنًا سُيِّرَت بِهِ الجِبالُ أَو قُطِّعَت بِهِ الأَرضُ أَو كُلِّمَ بِهِ المَوتىٰ ۗ بَل لِلَّهِ الأَمرُ جَميعًا ۗ أَفَلَم يَيأَسِ الَّذينَ آمَنوا أَن لَو يَشاءُ اللَّهُ لَهَدَى النّاسَ جَميعًا ۗ وَلا يَزالُ الَّذينَ كَفَروا تُصيبُهُم بِما صَنَعوا قارِعَةٌ أَو تَحُلُّ قَريبًا مِن دارِهِم حَتّىٰ يَأتِيَ وَعدُ اللَّهِ ۚ إِنَّ اللَّهَ لا يُخلِفُ الميعادَ
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
और अगर कोई ऐसा क़ुरान (भी नाज़िल होता) जिसकी बरकत से पहाड़ (अपनी जगह) चल खड़े होते या उसकी वजह से ज़मीन (की मुसाफ़त (दूरी)) तय की जाती और उसकी बरकत से मुर्दे बोल उठते (तो भी ये लोग मानने वाले न थे) बल्कि सच यूँ है कि सब काम का एख्तेयार ख़ुदा ही को है तो क्या अभी तक ईमानदारों को चैन नहीं आया कि अगर ख़ुदा चाहता तो सब लोगों की हिदायत कर देता और जिन लोगों ने कुफ्र एख्तेयार किया उन पर उनकी करतूत की सज़ा में कोई (न कोई) मुसीबत पड़ती ही रहेगी या (उन पर पड़ी) तो उनके घरों के आस पास (ग़रज़) नाज़िल होगी (ज़रुर) यहाँ तक कि ख़ुदा का वायदा (फतेह मक्का) पूरा हो कर रहे और इसमें शक़ नहीं कि ख़ुदा हरगिज़ ख़िलाफ़े वायदा नहीं करता