44وَقيلَ يا أَرضُ ابلَعي ماءَكِ وَيا سَماءُ أَقلِعي وَغيضَ الماءُ وَقُضِيَ الأَمرُ وَاستَوَت عَلَى الجودِيِّ ۖ وَقيلَ بُعدًا لِلقَومِ الظّالِمينَफ़ारूक़ ख़ान & अहमदऔर कहा गया, "ऐ धरती! अपना पानी निगल जा और ऐ आकाश! तू थम जा।" अतएव पानी तह में बैठ गया और फ़ैसला चुका दिया गया और वह (नाव) जूदी पर्वत पर टिक गई औऱ कह दिया गया, "फिटकार हो अत्याचारी लोगों पर!"