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Sura 8
Aya 72
72
إِنَّ الَّذينَ آمَنوا وَهاجَروا وَجاهَدوا بِأَموالِهِم وَأَنفُسِهِم في سَبيلِ اللَّهِ وَالَّذينَ آوَوا وَنَصَروا أُولٰئِكَ بَعضُهُم أَولِياءُ بَعضٍ ۚ وَالَّذينَ آمَنوا وَلَم يُهاجِروا ما لَكُم مِن وَلايَتِهِم مِن شَيءٍ حَتّىٰ يُهاجِروا ۚ وَإِنِ استَنصَروكُم فِي الدّينِ فَعَلَيكُمُ النَّصرُ إِلّا عَلىٰ قَومٍ بَينَكُم وَبَينَهُم ميثاقٌ ۗ وَاللَّهُ بِما تَعمَلونَ بَصيرٌ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और हिजरत की और अपने अपने जान माल से ख़ुदा की राह में जिहाद किया और जिन लोगों ने (हिजरत करने वालों को जगह दी और हर (तरह) उनकी ख़बर गीरी (मदद) की यही लोग एक दूसरे के (बाहम) सरपरस्त दोस्त हैं और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और हिजरत नहीं की तो तुम लोगों को उनकी सरपरस्ती से कुछ सरोकार नहीं-यहाँ तक कि वह हिजरत एख्तियार करें और (हॉ) मगर दीनी अम्र में तुम से मदद के ख्वाहॉ हो तो तुम पर (उनकी मदद करना लाज़िम व वाजिब है मगर उन लोगों के मुक़ाबले में (नहीं) जिनमें और तुममें बाहम (सुलह का) एहदो पैमान है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा (सबको) देख रहा है