You are here: Home » Chapter 7 » Verse 169 » Translation
Sura 7
Aya 169
169
فَخَلَفَ مِن بَعدِهِم خَلفٌ وَرِثُوا الكِتابَ يَأخُذونَ عَرَضَ هٰذَا الأَدنىٰ وَيَقولونَ سَيُغفَرُ لَنا وَإِن يَأتِهِم عَرَضٌ مِثلُهُ يَأخُذوهُ ۚ أَلَم يُؤخَذ عَلَيهِم ميثاقُ الكِتابِ أَن لا يَقولوا عَلَى اللَّهِ إِلَّا الحَقَّ وَدَرَسوا ما فيهِ ۗ وَالدّارُ الآخِرَةُ خَيرٌ لِلَّذينَ يَتَّقونَ ۗ أَفَلا تَعقِلونَ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

फिर उनके बाद कुछ जानशीन हुए जो किताब (ख़ुदा तौरैत) के तो वारिस बने (मगर लोगों के कहने से एहकामे ख़ुदा को बदलकर (उसके ऐवज़) नापाक कमीनी दुनिया के सामान ले लेते हैं (और लुत्फ तो ये है) कहते हैं कि हम तो अनक़रीब बख्श दिए जाएंगें (और जो लोग उन पर तान करते हैं) अगर उनके पास भी वैसा ही (दूसरा सामान आ जाए तो उसे ये भी न छोड़े और) ले ही लें क्या उनसे किताब (ख़ुदा तौरैत) का एहदो पैमान नहीं लिया गया था कि ख़ुदा पर सच के सिवा (झूठ कभी) नहीं कहेगें और जो कुछ उस किताब में है उन्होनें (अच्छी तरह) पढ़ लिया है और आख़िर का घर तो उन्हीं लोगों के वास्ते ख़ास है जो परहेज़गार हैं तो क्या तुम (इतना भी नहीं समझते)