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Sura 5
Aya 48
48
وَأَنزَلنا إِلَيكَ الكِتابَ بِالحَقِّ مُصَدِّقًا لِما بَينَ يَدَيهِ مِنَ الكِتابِ وَمُهَيمِنًا عَلَيهِ ۖ فَاحكُم بَينَهُم بِما أَنزَلَ اللَّهُ ۖ وَلا تَتَّبِع أَهواءَهُم عَمّا جاءَكَ مِنَ الحَقِّ ۚ لِكُلٍّ جَعَلنا مِنكُم شِرعَةً وَمِنهاجًا ۚ وَلَو شاءَ اللَّهُ لَجَعَلَكُم أُمَّةً واحِدَةً وَلٰكِن لِيَبلُوَكُم في ما آتاكُم ۖ فَاستَبِقُوا الخَيراتِ ۚ إِلَى اللَّهِ مَرجِعُكُم جَميعًا فَيُنَبِّئُكُم بِما كُنتُم فيهِ تَختَلِفونَ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और हमने तुम्हारी ओर यह किताब हक़ के साथ उतारी है, जो उस किताब की पुष्टि करती है जो उसके पहले से मौजूद है और उसकी संरक्षक है। अतः लोगों के बीच तुम मामलों में वही फ़ैसला करना जो अल्लाह ने उतारा है और जो सत्य तुम्हारे पास आ चुका है उसे छोड़कर उनकी इच्छाओं का पालन न करना। हमने तुममें से प्रत्येक के लिए एक ही घाट (शरीअत) और एक ही मार्ग निश्चित किया है। यदि अल्लाह चाहता तो तुम सबको एक समुदाय बना देता। परन्तु जो कुछ उसने तुम्हें दिया है, उसमें वह तुम्हारी परीक्षा करना चाहता है। अतः भलाई के कामों में एक-दूसरे से आगे बढ़ो। तुम सबको अल्लाह ही की ओर लौटना है। फिर वह तुम्हें बता देगा, जिसमें तुम विभेद करते रहे हो