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Sura 33
Aya 58
58
وَالَّذينَ يُؤذونَ المُؤمِنينَ وَالمُؤمِناتِ بِغَيرِ مَا اكتَسَبوا فَقَدِ احتَمَلوا بُهتانًا وَإِثمًا مُبينًا

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और जो लोग ईमानवाले पुरुषों और ईमानवाली स्त्रियों को, बिना इसके कि उन्होंने कुछ किया हो (आरोप लगाकर), दुख पहुँचाते है, उन्होंने तो बड़े मिथ्यारोपण और प्रत्यक्ष गुनाह का बोझ अपने ऊपर उठा लिया