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Sura 3
Aya 27
27
تولِجُ اللَّيلَ فِي النَّهارِ وَتولِجُ النَّهارَ فِي اللَّيلِ ۖ وَتُخرِجُ الحَيَّ مِنَ المَيِّتِ وَتُخرِجُ المَيِّتَ مِنَ الحَيِّ ۖ وَتَرزُقُ مَن تَشاءُ بِغَيرِ حِسابٍ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

तू ही रात को (बढ़ा के) दिन में दाख़िल कर देता है (तो) रात बढ़ जाती है और तू ही दिन को (बढ़ा के) रात में दाख़िल करता है (तो दिन बढ़ जाता है) तू ही बेजान (अन्डा नुत्फ़ा वगैरह) से जानदार को पैदा करता है और तू ही जानदार से बेजान नुत्फ़ा (वगैरहा) निकालता है और तू ही जिसको चाहता है बेहिसाब रोज़ी देता है